Thursday, August 12, 2010

जरा सी दूरी

और जरा सी दूरी दरम्यान रह गयी
कहते कहते दिल की दास्तान रह गयी

कब ये हो की तुम मेरी बाँहों में यूँ आ जाओ
के हम बोले किस्मत मेहरबान हो गयी

कम दूरी पे और भी मुश्किल है दिल को समझाना
धड़कन कहती है थोडा सा और करीब आ जाना
कशमकश में ऐसे हे तो शाम हो गयी
और जरा सी दूरी दरम्यान रह गयी

हाँथ में तेरा हाँथ लिए मैं सपनो में खो जाऊं
ऐसी दुनिया से जल्दी फिर लौट के मैं न आऊं
हसरत लगता है जैसे अरमान हो गयी
और जरा सी दूरी दरम्यान रह गयी

2 comments:

  1. sach me aapke blog par aakar
    to mai ek alag hi duniya me aa gayi hu..
    bahut hi accha likhte hai aap,,,,

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