Thursday, August 12, 2010

याद आई है..

कई बहती हुई आँखों को छोड़कर हमने
गाँव से शहर में आने की सजा पायी है

अब ये जाना की वो मिट्टी की दीवारें थी सही
पत्थरों से जो दिलो जाँ पे चोट खायी है

रौशनी के लिए मशहूर ये शहर शायद
दिलों ने हाँ पर अंधेरों से मात खायी है

है बड़ा इस कदर मकान कुछ खबर ही नहीं
हर तरफ देखिये तन्हाई बस तन्हाई है

सोंचते थे खरीद लेंगे है खोया जो भी
अब ये जाना की "दीप" चीज़ क्या गवाई है

कोई छिपकर वहां रोया था हमारी खातिर
यहाँ तो दोस्ती का नाम बेवफाई है

आज कुछ यूँ हुई तबिअत की नमी आँखों में
फिर वोही झोपडी मिट्टी की याद आई है

4 comments:

  1. wo bahut pyaari nazm...ek ek sher kamaal
    ghar ki yaadein hoti hee aisi hai
    blog kaa naya look bahut badhiyaa hai

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  2. bahut hi sundar likha hai aap ne,

    wo khet wo khalyan bahut yaad ane lage hai
    katne laga hai shehar ka har kinara mujhe
    na suddh haba na pani milabat bahut.........

    kuchh yande aisee deep likho
    na bhula sanke dunia wale
    kuchh aise sundar geet likho
    roshan ho jao duniya mai deepak jaisee hi prit likho,
    sir,
    galti ho muaf karna jo bhi likha aap ke liye

    jagnandan dhuriya

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