Thursday, May 27, 2010

डूबती कश्ती...

डूबती कश्ती हमे मिलके बचाना होगा
फिर वही किस्से नयी धुन में सुनाना होगा

आज फुर्सत ही कहाँ खुद की गमें उलझन से
अबके वारिश में यहाँ कौन नहाना होगा

बात बीती की पडोसी के यहाँ जाते थे
अब तो शायद ही कभी हाँथ मिलाना होगा

ये मोहब्बत जो कभी दिल की बात होती थी
हैसियत देख के अब दिल भी लगाना होगा

कुछ तो बांकी हो शराफत की शाख दुनियां में
लफ्ज तहजीब के बच्चों को सिखाना होगा

आज सम्हले नहीं गर फिर तो भरोसा है हमे
"दीप" कुछ और दिनों का ये जमाना होगा

डूबती कश्ती हमे मिलके बचाना होगा.

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